मूर्ति पूजा का रहस्य(Murti Pooja Ka Rahasya)
मूर्ति पूजा हमेशा से एक चर्चा का विषय रहा है | कई शताब्दियों से मूर्ति पूजा हमें करनी चाहिए या नहीं, इस पर सभी के अलग-अलग मत रहे हैं | कोई कहता है कि मूर्ति तो पत्थर की होती है | और पत्थर को पूजने से क्या फायदा | ईश्वर को मन से याद करना चाहिए | तो कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर को मन से याद करना तो ठीक है लेकिन फिर पूजा-पाठ कैसे करेंगे | अगर मूर्ति पूजा करने से कोई फायदा नहीं होता तो फिर इतने सारे मंदिर क्यों बनाये गए हैं |
किसी का भी मत कुछ भी रहा हो , पर प्रश्न ये है कि क्या वाकई में मूर्ती पूजा करनी चाहिए या नहीं | तो इस प्रश्न का उत्तर है कि हाँ आज के समय में मूर्ती पूजा जरुर करनी चाहिए | यहाँ पर मैंने आज के समय में क्यों कहा , इसे हम आगे जानेंगे | अगर कुछ लोगों को छोड़ दें तो अब लगभग सब लोग किसी न किसी रूप में भगवान की मूर्ति को पूजते हैं | लेकिन वो ये नहीं जानते कि मूर्ती की पूजा करने से क्या लाभ होता है और कैसे होता है | कैसे मूर्ति पूजन करना चाहिए | सभी का अपना अलग-अलग तरीका है पूजा करने का | आज हम जानेंगे कि मूर्ति पूजा का सही तरीका क्या है और इससे क्या और कैसे लाभ होता है |
इस रहस्य को जानने के लिए हमें कुछ पीछे जाना होगा | हजारों वर्ष पहले, जब ऋषि मुनि जप-तप करते थे | उनको ईश्वर के स्वरुप का पूर्ण ज्ञान था | वो जानते थे कि ईश्वर ऊर्जा का एक बहुत बड़ा स्त्रोत है और हम सब उससे निकले हुए छोटे-छोटे कण | और हम सब उस महाशक्ति से जुड़े हुए हैं | वो उस महाशक्ति को देख सकते थे | उससे निकलने वाली ऊर्जा को ग्रहण कर सकते थे और उस ऊर्जा से जीवन सुखमय हो जाता था | पर धीरे-धीरे समय बीतता गया और मनुष्य भोतिक वस्तुओं में रमता चला गया और जप-तप से दूर होता चला गया | और ईश्वर से भी |
हमारे ऋषि-मुनि आने वाले इस समय से परिचित थे | इसलिए उन्होंने मनुष्य के लाभ के लिए और ईश्वर से जुड़े रहने के लिए , मूर्ति पूजा का विकल्प निकाला | तो चलिए समझते हैं कि मूर्ती पूजा से क्या लाभ होता है और हम ईश्वर के और पास कैसे रहते हैं |
मान लीजिये कि आप बाज़ार से अपने ईष्टदेव कि एक मूर्ति लाये और अपने मंदिर में उसे स्थापित कर लिया | क्या अभी इस मूर्ति में भगवान हैं | नहीं अभी ये सिर्फ एक पत्थर है | तो इसमें भगवान् कैसे आएंगे | जब आप रोज़ इस मूर्ति की पूजा करना शुरू करेंगे | तो धीरे-धीरे इसके चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा चक्र बनने शुरू हो जायेंगे | जैसे-जैसे पूजा करने के दिन बढ़ते जायेंगे वैसे-वैसे ही ये ऊर्जा चक्र और सघन और मजबूत होते चले जायेंगे | और उस मूर्ति में प्राण प्रतिस्था हो जाएगी ,मतलब उस ऊर्जामयी ईश्वर का एक सकारात्मक अंश उसमे आ जायेगा | अब जब भी हम उन ऊर्जा चक्रों के संपर्क में आएंगे तो हम और उर्जावान हो जायेंगे और ईश्वर के और करीब आ जायेंगे |
भगवान् मूर्ति में नहीं भाव में होते हैं और जब भी हम अपने भाव किसी भी वस्तु पर केन्द्रित करते हैं तो भाव रूपी ऊर्जा उस वस्तु पर प्रवाहित होने लगती है | और बार-बार ये करने से वो वस्तु ऊर्जामयी हो जाती है | अब मूर्ति चाहे पत्थर की हो या किसी अन्य पदार्थ की और चाहे किसी भी भगवान् की, चाहे वो एक पत्थर का टुकड़ा ही क्यों न हो | उससे कोई फर्क नहीं पड़ता | वो ईश्वर रूपी ऊर्जा तो एक ही है, जो हर जगह व्याप्त है