भवन निर्माण की वास्तु व्यवस्था से जीवन में प्राप्त होने वाली अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण रूप से सम्बन्ध होता है | भूखण्ड पर होने वाले निर्माण में कुछ स्थल ऐसे होते हैं जो धन लाभ या धन हानि के दृष्टिकोण से संवेदनशील माने जाते हैं | उन स्थलों पर निर्माण वास्तुनुसार करवाना हितकर रहता है | इस सन्दर्भ में वास्तु व्यवस्था से सम्बंधित कुछ उपयोगी व्यवस्थाओं का उल्लेख किया जा रहा है –
- यदि पूर्वी भाग में चबूतरा अथवा बरामदा बनवाना हो तो बरामदे का तल एवं छत नीची होनी चाहिए |
- यदि उत्तरी भाग में बरामदा बनवाना हो तो बरामदे की छत एवम फर्श नीचा होना चाहिए |
- यदि उत्तर-पूर्वी भाग के उत्तरी भाग में मार्ग प्रहार हो तो यह शुभ संकेत माना जाता है |
- वर्षा का जल यदि भूखंड के उत्तरी-पूर्वी भाग से निकलता हो तो यह शुभ लक्षण माना जाता है |
- उत्तर-पूर्वी भाग में शौचालय का निर्माण कदापि नही करें , ना ही सैप्टिक टैंक का निर्माण कराएं |
- उत्तर-पूर्वी भाग में सीढियां होने पर आर्थिक हानि संभावित है | सीढ़ियों का निर्माण दक्षिण , पश्चिम अथवा दक्षिण-पश्चिमी भाग में करवाना चाहिए |
- भवन के केंद्र स्थल पर किसी दीवार / खम्भे का निर्माण नही करें |
- प्रवेश द्वार पर दहलीज का निर्माण शुभ फलप्रद रहता है | अशुभ नजर एवं ग्रहदोषों का प्रवेश भवन में रोकने में दहलीज महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है | दहलीज बनाते समय उसके नीचे चांदी का तार डाल देना चाहिए |
- धन रखने की अलमारी / सेफ को कमरे के दक्षिण-पश्चिम में रखना चाहिए तथा अलमारी / सेफ का मुहं उत्तर दिशा की तरफ रखना चाहिए अथवा अलमारी / सेफ को पश्चिम में भी रखा जा सकता है , पर उसका मुहं पूर्व दिशा की ओर रहना चाहिए |
- जल स्त्रोत उत्तर-पूर्व भाग में होने पर धन कारक माना जाता है किन्तु जल स्त्रोत उत्तर-पूर्व को दक्षिण-पश्चिम कोने को मिलने वाली रेखा पर ही स्थित हो तो भवन स्वामी पर विपरीत प्रभाव परिलक्षित होते हैं |
- यदि उत्तरी भाग दक्षिणी भाग की तुलना में नीचा हो तथा उत्तरी भाग में दक्षिणी भाग की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक खाली स्थल हो तो उपरोक्त कारक धनकारक माने जाते हैं | यदि उत्तरी भाग में कूड़ा-करकट अथवा अनुपयोगी सामान रखा जाता है तब संभव है गृहस्वामी को परिश्रम की तुलना में आय प्राप्त नही होती हो | इसी प्रकार यदि उत्तरी दीवार को हद बनाकर भवन निर्मित किया हो अथवा उत्तरी भाग में खाली स्थल हो तब संभव है भवन स्वामी को आय अर्जन में परेशानियों का सामना करना पड़े |
- यदि उत्तर-पूर्वी भाग भवन में बढ़ा [extended] है तो ऐसे भवन में स्थाई वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत होता है |
- यदि भवन एवं उसमे स्थित प्रत्येक कक्ष का दक्षिण-पश्चिम भाग अपेक्षाकृत नीचा हो तो संभव है आय का अधिकांश भाग बीमारियों के ईलाज में खर्च हो तथा आय अर्जन में परेशानियों का सामना करना पड़े अथवा मुकदमे इत्यादि में अनावश्यक व्यय करना पड़े |
- यदि दक्षिण-पूर्व , दक्षिण-पश्चिम , उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर-पूर्व की अपेक्षा नीचा हो तो संभव है गृह स्वामी की आर्थक स्थिति अच्छी न हो |
- यदि भवन का मुख्य दरवाजा पीछे के दरवाजे से छोटा हो तो ऐसे भवन स्वामी की आय व्यय में संतुलन नही होता |
- यदि भवन बहुमंजिला है और उसमे द्वार के ऊपर द्वार हो तो इसे व्यय कारक माना जाता है |
- यदि चौखट तथा दरवाजों में अंदर तथा बाहर की ओर झुकाव हो तब सम्भव है भवन स्वामी की आर्थिक स्थति में उत्तरोत्तर कमी हो |
- यदि भवन में प्रवेश हेतु सीढियां क्षतिग्रस्त हैं तो ऐसे भवन स्वामी को आय अर्जन हेतु कड़ी मेहनत करनी पडती है एवम आय से अधिक व्यय करने की परिस्थिति का सामना करना पड़ता है |
- आवासीय / व्यवसायिक स्थानों के भूखंड के ईशान [उत्तर-पूर्व] को ढकते हुए निर्माण कदापि नही कराना चाहिए अन्यथा अर्थ वृद्धि में ऐसा निर्माण व्यवधान कारक माना जाता है |
- भवन निर्माण में ईशान [उत्तर-पूर्व] को बरामदे के रूप में उपयोग करें | ऐसा न कर सकें तो उत्तरी-पूर्वी ईशान में या उत्तर , पूर्व में द्वार या खिडकियों की व्यवस्था अवश्य कर लें | ईशान को प्रकाश से ढकना या बंद करना धन आगमन के द्वार बंद करने के समान है |
- ईशान [उत्तर-पूर्व] को रसोई गृह या शौचालय के रूप में प्रयोग न करें अन्यथा गृह कलह के साथ मानसिक तनाव एवं धन काफी संघर्ष के बाद प्राप्त होता है | वहाँ स्नान गृह की व्यवस्था की जा सकती है |
- प्रबल धन कारक स्थितियां उन भूखंडों में पाई गयीं हैं , जिनके उत्तर या पूर्व ईशान , दक्षिण आग्नेय या पश्चिम वायव्य के सामने से रोड , मार्ग या उपयोग में आने वाली गली आती हो और बाएं – दायें दिशाओं में चली जाती है अर्थात उपरोक्त स्थानों पर मार्ग द्वारा [ T ] बनाती है |