आज हम आपको रुद्राक्ष को शोधित व अभिमंत्रित करना बता रहे हैं |
रुद्राक्षोपनिषद के मतानुसार रुद्राक्ष के मुख में महादेव शिवजी का ,रुद्राक्ष की नाभि में भगवान विष्णु का तथा रुद्राक्ष के तल में भगवान् ब्रह्मा का वास होता है |
रुद्राक्ष शोधन की विधि :- रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व शिधित व अभिमंत्रित कर लेना चाहिए | रुद्राक्ष को एक दिन व एक रात्रि नारियल के पानी में डालकर रखें | इसके पश्चात् रुद्राक्ष को पंचामृत से स्नान कराएं तथा गंगाजल अथवा शुद्ध जल से धो लें | धूप-दीप देकर निर्धारित मुखी के लिए निर्धारित मंत्र जप कर विधिवत रूप से धारण करना चाहिए | इस प्राकर शोधित किये गये रुद्राक्ष को पूजा स्थल पर रखकर चन्दन से टीका करें तथा जिस भी मुख का रुद्राक्ष हो उससे सम्बंधित बीज मंत्र का 108 बार जाप करते हुए रुद्राक्ष कके ऊपर निरंतर चावल फेंकते रहें | यदि संभव हो तो बीज मंत्र के जप से पूर्व बीज मंत्र का विनियोग ,न्यास ,करन्यास ,अंगन्यास कर लेना चाहिए | रुद्राक्ष को शुक्लपक्ष के सोमवार अथवा पूर्णिमा अथवा अमावास्या अथवा महिने की शिवरात्रि अथवा ग्रहणकाल के दौरान शुभ एवं अनुकूल मुहूर्त में धारण करना चाहिए |जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता हो उसे तामसिक भोजन जैसे – शराब ,मांस इत्यादि का त्याग कर देना चाहिए |
शयन , शौच व सहवास के दौरान रुद्राक्ष धारण नही करें :- रात्रि को सोते वक़्त ,शौच के दौरान ,सहवास के दौरान तथा मासिक धर्म के दौरान रुद्राक्ष शरीर पर धारण नही करना चाहिए | अशुद्ध होने की अवस्था में रुद्राक्ष को पुनः शोधित व अभिमंत्रित कर धारण करना चाहिए | रुद्राक्ष को प्रतिदिन जल/गंगाजल से स्नान करवा लेना उपुक्त रहता है |
गले में 36 अथवा 108 रुद्राक्षों की माला का यज्ञोपवीत बना कर उपयुक्त मंत्र से धारण करना चाहिए | तीन ,पांच अथवा सात रुद्राक्षों के दाने की माला भी धारण की जा सकती है |