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सनस्टोन(Sunstone)

सनस्टोन(Sunstone)

रत्न ज्योतिष
सनस्टोन क्या होता है ? सनस्टोन पीले रंग का या नीले रंग का चमकीला रत्न होता है. इसे माणिक का उपरत्‍न माना जाता है . सूर्य के शुभ प्रभाव को पाने के लिए, इस रत्न को धारण किया जाता है| सूर्य देव की कृपा से ही जीवन में सफलता मिलती है|  कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए यह रत्न धारण किया जाता है| सनस्टोन किसको धारण करना चाहिए? यह रत्न सिंह, तुला और मीन राशि को लिए अच्छा माना जाता है| इन राशियों के जातक ज्योतिषी से सलाह लेकर इस रत्न को धारण कर सकते हैं| बिना परामर्श लिए पहनने पर नुकसान हो सकता है| सनस्टोन पहनने के फायदे इस रत्न को धारण करने से तनाव और मनसिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है| इसके अलावा यह रत्न जीवन में सुख और खुशी प्रदान करने में सहायक होता है| पेट से संबंधित समस्या के लिए भी यह रत्न लाभकारी होता है. साहस जैसे गुण का भी विकास होता है| सनस्टोन को कैसे पहने 3 से 5 रत्ती त...
मूर्ति पूजा का रहस्य(Murti Pooja Ka Rahasya)

मूर्ति पूजा का रहस्य(Murti Pooja Ka Rahasya)

महत्वपूर्ण
मूर्ति पूजा का रहस्य(Murti Pooja Ka Rahasya) मूर्ति पूजा हमेशा से एक चर्चा का विषय रहा है | कई शताब्दियों से मूर्ति पूजा हमें करनी चाहिए या नहीं, इस पर सभी के अलग-अलग मत रहे हैं | कोई कहता है कि मूर्ति तो पत्थर की होती है | और पत्थर को पूजने से क्या फायदा | ईश्वर को मन से याद करना चाहिए | तो कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर को मन से याद करना तो ठीक है लेकिन फिर पूजा-पाठ कैसे करेंगे | अगर मूर्ति पूजा करने से कोई फायदा नहीं होता तो फिर इतने सारे मंदिर क्यों बनाये गए हैं | किसी का भी मत कुछ भी रहा हो , पर प्रश्न ये है कि क्या वाकई में मूर्ती पूजा करनी चाहिए या नहीं | तो इस प्रश्न का उत्तर है कि हाँ आज के समय में मूर्ती पूजा जरुर करनी चाहिए | यहाँ पर मैंने आज के समय में क्यों कहा , इसे हम आगे जानेंगे | अगर कुछ लोगों को छोड़ दें तो अब लगभग सब लोग किसी न किसी रूप में भगवान की मूर्ति को पूजते हैं |...
साढ़े साती शनि- कब और कहाँ रहता है(Saadhe saati shani – kab aur kahan rahta hai)

साढ़े साती शनि- कब और कहाँ रहता है(Saadhe saati shani – kab aur kahan rahta hai)

शनि ग्रह
साढ़े साती शनि- कब और कहाँ रहता है(Saadhe saati shani - kab aur kahan rahta hai) Saadhe saati shani kab aur kahan rahta hai साढ़े साती कुल 2700 दिन की होती है | दिनों के हिसाब से साढ़े सात वर्ष की अवधि में सामान्तया शनि के शुभ और अशुभ प्रभाव इस प्रकार हैं |  100 दिन : शनि मुख पर रहता है | यह समय जातक के लिए हानिकारक रहता है | 101 से 500 : अर्थात 400 दिन | इस अवधि में शनि दायीं भुजा पर रहता है | यह समय विजयप्रदायक , लाभदायक एवं सफ़लता दिलाने वाला होता है | 501 से 1100 दिन : मतलब 600 दिन | यह समय यात्राकारक रहता है , क्योंकि शनि पैरों पर रहता है | यात्रायें लाभदायक या हानिकारक हो सकती हैं | इसका निर्णय जन्मकुंडली में स्थित शनि कि शुभ -अशुभ स्थिति पर निर्भर करता है | 1100 से 1600 दिन : यानी 500 दिन | इस अवधि में शनि पेट पर रहता है | यह समय भी लाभदायक ,सफलता दिलाने वाला ...
Ganesh Ji Ke Vahan Mushak Ka Rahasya (गणेशजी के वाहन मूषक का रहस्य)

Ganesh Ji Ke Vahan Mushak Ka Rahasya (गणेशजी के वाहन मूषक का रहस्य)

महत्वपूर्ण
Ganesh Ji Ke Vahan Mushak Ka Rahasya (गणेशजी के वाहन मूषक का रहस्य) Ganesh Ji Ke Vahan Mushak Ka Rahasya (गणेशजी के वाहन मूषक का रहस्य)- एक बार अमरावती में देवताओं की सभा हो रही थी | देवराज इन्द्र राज सिंहासन पर विराजमान थे | उस सभा में गन्धर्व राज क्रौच भी उपस्थित थे | किसी आवश्यक कार्यवश उन्हें सभा से जाना पड़ा | शीघ्रता के कारण गलती से उनका पाँव वहां बैठे महर्षि वामदेव से छू गया | वामदेव ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधवश तुरन्त शाप दे दिया कि हे मूर्ख गन्धर्व तू इतना मदमस्त हो रहा है कि तूने शांत बैठे मुनि को लात मार दी | तू मूषक बन जा | श्राप सुनकर गन्धर्वराज भयभीत हुआ तथा मुनि के सामने रोने और गिडगिडाने लगा | महर्षि वामदेव को उसपर दया आ गयी और उन्होंने कहा कि तू मूषक तो अवश्य बनेगा किन्तु गणेशजी का वाहन(vahan) बनने के कारण तू दुखी नही रहेगा | गन्धर्वराज शीघ्र ही मूषक बनकर महर्षि...
मंत्र जाप की माला में मनकों की संख्या 108 या 54 ही क्यों होती है |

मंत्र जाप की माला में मनकों की संख्या 108 या 54 ही क्यों होती है |

पूजा पाठ
मंत्र जाप माला में मनकों की संख्या 108 या 54 ही क्यों होती है,यह प्रश्न आपके मस्तिष्क में कई बार आया होगा.विभिन्न प्रयोजनों की पूर्ति हेतु विभिन्न मंत्रों की जाप संख्या भी परिवर्तित हो सकती है जैसे  कुछ ग्यारह सौ तो कुछ मंत्र सवा लाख जप संख्या के भी होते है.किन्तु मनकों की संख्या जप हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.यही कारण है की अधिकतर मालाओ में मनको की संख्या 108 या 54  होती है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंत्र जाप में मनकों की संख्या हमारे ग्रहों की संख्या के आधार पर मानी गयी है, वैसे तो बहुत सारे ग्रह हमारे सौर मंडल में हैं परन्तु9 ग्रह मुख्य होते हैं इन्ही ग्रहों की संख्या पर मनकों की संख्या निर्धारित की गयी है | यदि हम 108 का जोड़ करें तो 9 ही आयेगा और यदि 54 का जोड़ करें तो भी 9 ही आयेगा | 108 = 1+0+8 = 9 54 = 5+4 = 9 इस प्रकार 9 ग्रहों और सारे देवी देवताओं को प्रसन्न करने के ल...
पूजा साधना में विशेष रूप से ध्यान रखें ये बातें

पूजा साधना में विशेष रूप से ध्यान रखें ये बातें

पूजा पाठ
पूजा साधना करते समय बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन पर सामान्यतः हमारा ध्यान नही जाता है लेकिन पूजा साधना की द्रष्टि से ये बातें अति महत्वपूर्ण हैं |  गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं | भैरव की पूजा में तुलसी का ग्रहण नही है| कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोडकर निषेध है | बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नही करते | रविवार को दूर्वा नही तोडनी चाहिए | केतकी पुष्प शिव को नही चढ़ाना चाहिए | केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें | देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नही चाहिए | शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नही होता |   जो मूर्ति स्थापित हो उसमे आवाहन और विसर्जन नही होता | तुलसीपत्र को मध्याहोंन्त्तर ग्रहण न करें | पूजा करते समय यदि गुरुदेव ,ज्येष्ठ व्यक्ति ...
जप – पूजन – साधना – उपासना में विभिन्न शब्दों का अर्थ जानें

जप – पूजन – साधना – उपासना में विभिन्न शब्दों का अर्थ जानें

पूजा पाठ
मंत्र- जप , देव पूजन तथा उपासना के संबंध में प्रयुक्त होने वाले कुछ विशिष्ट शब्दों का अर्थ इस प्रकार समझना चाहिए –  पंचोपचार – गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं | पंचामृत – दूध , दही , घृत , मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं | पंचगव्य – गाय के दूध , घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं | षोडशोपचार – आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य , आचमन , स्नान , वस्त्र , अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप , दीप , नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’ कहते हैं | दशोपचार – पाध्य , अर्घ्य , आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं | त्रिधातु – सोना , चांदी और लोहा |कुछ आचार्य सोना , चांदी...
रुद्राक्ष से करें वास्तुदोषों का निवारण

रुद्राक्ष से करें वास्तुदोषों का निवारण

रुद्राक्ष
रुद्राक्ष वृक्ष से धनात्मक ऊर्जा की उत्पत्ति होती है | यह ऊर्जा आस-पास के स्थान को शुभ एवं अनुकूल बनाने में सहायक होती है | मान्यतानुसार रुद्राक्ष वृक्ष सभी प्रकार के नकारात्मक वातावरण को शुद्ध करने में सक्षम होता है | जिस स्थान पर रुद्राक्ष वृक्ष होता है वहां खराब दृष्टि व अशुभता व्याप्त नही रहती है अतः वास्तुदोषों से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जा को संतुलित करने के लिए रुद्राक्ष वृक्ष का रोपण उपयुक्त रहता है | रुद्राक्ष वृक्ष से एक विशिष्ट ऊर्जा शक्ति निरंतर रूप से उत्पन्न होती रहती है जो कि त्रिदोषों को नष्ट करने में सहायक होती है | स्थान विशेष पर व्याप्त ऊपरी बाधा एवं खराब दृष्टियों को दूर करने में रुद्राक्ष वृक्ष से उत्पन्न दिव्य ऊर्जा प्रभावी होती है | रुद्राक्ष वृक्ष से उत्पन्न दिव्य ऊर्जा स्थान विशेष की विद्युत तरंगों के असंतुलन को दूर करने में सहायक होती हैं| बारह मुखी रुद्राक्ष के द...
मोक्ष प्रदायक रुद्राक्ष

मोक्ष प्रदायक रुद्राक्ष

रुद्राक्ष
आध्यात्मिक जगत में रुद्राक्ष की महिमा अपार है | यह फल अनेकानेक चमत्कारिक प्रभावों से युक्त है | इसके धारण करने वाले व्यक्ति को शिव आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है | रुद्राक्ष की उपयोगिता जितनी आध्यात्मिक जगत में है,उतनी ही लौकिक जीवन में भी है | रुद्राक्ष धारण करने से मनुष्य का मन ,चित्त ,बुद्धि और ह्रदय नियंत्रित और पवित्र बनता है | उसके पाप नष्ट होते हैं | जो व्यक्ति रुद्राक्ष धारण कर रुद्राक्ष माला से इष्ट देव का जप करता है उसे बहुत पुण्य प्राप्त होता है | रुद्राक्ष माला से नियमानुसार जप करने से अशांत मन को शांति प्राप्त होती है | रुद्राक्ष को 9,18 ,27, 36, 54 अथवा 108 दानों की संख्या में स्वर्ण अथवा चांदी के तार में अथवा लाल धागे में पिरोकर शोधित तथा निर्धारित मन्त्रों से अभिमंत्रित कर किसी शुभ एवं अनुकूल मुहूर्त में सोमवार ,अमावस्या ,पूर्णिमा अथवा ग्रहणकाल के दौरान धारण करना चाहिए | रुद्...
राशि के आधार पर रुद्राक्ष धारण

राशि के आधार पर रुद्राक्ष धारण

रुद्राक्ष
मेष राशि – नामाक्षर - चू ,चे ,चो ,ला ,ली ,लू ,ले ,लो ,अ वाले व्यक्तिओं के लिए रुद्राक्ष | इस राशि के व्यक्ति तीन मुखी रुद्राक्ष को छोड़कर अन्य कोई भी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं |मेष राशि के व्यक्ति को एक ,पांच एवं चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करना लाभकारी होता है | वृष राशि – नामाक्षर – ई ,ऊ ,ऐ ,वा ,वी ,वू ,वे ,वो वाले व्यक्तियों के लिए रुद्राक्ष | वृष राशि वाले व्यक्ति कोई भी मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं | विशेषतः इनके लिए चार ,छह ,तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहिए | मिथुन राशि – नामाक्षर – का ,की ,कू ,ध ,ड ,ध ,के ,को ,ह  वाले व्यक्तियों के लिए रुद्राक्ष | इस राशि के व्यक्ति को पांच मुखी रुद्राक्ष को छोड़कर कोई भी मुखी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं | विशेषतः इस राशि वाले व्यक्तियों के लिए आठ मुखी रुद्राक्ष धारण योग्य होता है | कर्क राशि – नामाक्षर – ही ,हू ,हे ,हो ,डी ,डू ,डे ,डी वा...