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परस्पर मित्र व शत्रु रत्न

परस्पर मित्र व शत्रु रत्न

रत्न ज्योतिष
             क्रम संख्या            रत्न मित्र शत्रु समानदर्शी 1. हीरा पन्ना ,नीलम माणिक्य ,मोती मूंगा ,पुखराज 2. मोती माणिक्य ,पन्ना - हीरा ,मूंगा ,नीलम ,पुखराज 3. मूंगा माणिक्य ,मोती ,  पुखराज पन्ना हीरा , नीलम 4. पन्ना माणिक्य ,हीरा मोती मूंगा ,पुखराज 5. नीलम पन्ना ,हीरा माणिक्य ,मोती ,मूंगा नीलम ,पुखराज 6. माणिक्य मोती ,मूंगा ,पुखराज हीरा ,नीलम पन्ना 7. गोमेद पन्ना ,नीलम ,हीरा माणिक्य ,मोती मूंगा ,पुखराज 8. वैदूर्य पन्ना ,नीलम ,हीरा माणिक्य ,मोती मूंगा ,पुखराज ...
रत्नों के शुभ / अशुभ की परीक्षा

रत्नों के शुभ / अशुभ की परीक्षा

रत्न ज्योतिष
विधि – कौन सा रत्न धारण करना शुभकारक होगा या हानिकारक , इसके जानने के लिए निम्न विधि बहुत ही सरल है | नीचे एक चक्र बनाया गया है , जिसमे 81 कोष्ठ चक्र हैं , जिसके कोष्ठकों में भिन्न-भिन्न अंक लिखे हुए हैं | धारणीय रत्न को जानने के लिए अपने दाहिने हाथ की अंगुली को चक्र के किसी कोष्ठ में रखें | उस कोष्ठ में जो अंक लिखा हो उसमे 3 से भाग दें | यदि शेष 1 अंक बचे तो जो रत्न आप खरीदने के लिए तैयार हैं वह शुभ फल देने वाला है , 2 अंक शेष बचे तो वह रत्न मध्यम फल देने वाला है | इसके अतिरिक्त अन्य अंक शेष बचता है तो वह अशुभ फल देने वाला है | 60 6 59 1 52 73 4 79 30 43 31 57 29 7 71 58 20 81 2 61 18 44 51 28 3 36 53 66 21 56 5 27 45 54 16 72 50 42 17 22 55 8 15 35 46 32 9 48 14 41 26 47 11 64 70 63 23 37 10 4...
किस ग्रह के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए |

किस ग्रह के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए |

रत्न ज्योतिष
यहाँ हम आपको बताएँगे कि किस ग्रह के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए | जिससे आप अपने लिए सही रत्न का चुनाव कर पायें | सूर्य = माणिक्य चन्द्र = मोती मंगल = मूंगा बुध = पन्ना शुक्र = हीरा शनि = नीलम राहु = गोमेद केतु = लहसुनिया ब्रहस्पति = पुखराज पृथ्वी = मैगनेट इस प्रकार हम रत्नों से अपने जीवन को उन्नत बना सकते हैं | किसी भी रत्न को धारण करने से पहले उसे गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए| उसके बाद धुपादी दिखाकर धारण करना चाहिए| ...
रत्न ज्योतिष

रत्न ज्योतिष

रत्न ज्योतिष
कहते हैं | रत्न जड़ित अंगूठी पहनने से रंक भी राजा हो जाते हैं | हममें से अधिकतर लोग यही समझते हैं कि जितना महंगा रत्न होगा, उतनी ही उन्नति हम करेंगे | या कुछ लोग मानते हैं कि यह तो एक मात्र आभूषण है जो पसंद हो पहन लो | ऐसी ही कई भ्रांतियां चारों तरफ रत्नों को लेकर फैली हुई हैं | परन्तु सच्चाई कुछ और ही है | न तो ऐसे ही किसी भी रत्न को पहनने से उन्नति होती है, और न ही ये मात्र सजने के लिए आभूषण ही हैं | रत्न तो वो ऊर्जा हैं जो यदि सही चुने जाएँ तो बहुत अच्छा वरना कुछ भी हो सकता है | इसलिए रत्नों का चयन बहुत सावधानी से करना चाहिए , किसी योग्य ज्योतिषी के द्वारा | अब आपके मन में ये प्रश्न आ रहा होगा कि रत्न आखिर काम कैसे करते हैं |  तो आइये जानें- वैसे तो हमारे सौरमंडल में बहुत सारे ग्रह हैं पर 10 ग्रह ऐसे हैं जो ज्योतिष विज्ञान के अनुसार हमारे पुरे जीवन का निर...
हमारी ऊर्जा

हमारी ऊर्जा

महत्वपूर्ण, हमारी ऊर्जा
ऊर्जा जीवन का केंद्र बिंदु है | इस संसार में हर एक वस्तु ऊर्जा से ही संचालित होती है | यदि ऊर्जा नहीं होगी तो ये संसार ही समाप्त हो जायेगा |  ऊर्जा दो प्रकार की होती है |- सकारात्मक ऊर्जा यानि पॉजिटिव इनर्जी या विश्व शक्ति  और नकारात्मक ऊर्जा यानि नेगेटिव इनर्जी | सकारात्मक ऊर्जा से हम संचालित होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा हमारा पतन कर देती है | आध्यात्म के सन्दर्भ में बात करें तो आदिशक्ति, माँ दुर्गा ऊर्जा का ही स्वरुप हैं | आदिशक्ति से ही इस संसार का प्रारंभ हुआ |  इस संसार में हर एक प्राणी में अलग-अलग ऊर्जा की मात्रा है | जिससे वो संचालित होता है | जब हमारी ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है तो हम थक जाते हैं फिर जब हम सोते हैं | तो फिर से ऊर्जा स्तर बढ़ जाता है | हम फिर से ऊर्जावान महसूस करने लगते हैं अपने को | हम फिर से चार्ज हो जाते हैं | हमारे साथ जो भी घटित हो रहा है वो हमारे अन्दर की ऊर...
हमारे ग्रह

हमारे ग्रह

महत्वपूर्ण, हमारे ग्रह
वैसे तो बहुत सारे ग्रह हमारे सौर मंडल में हैं ,परन्तु नौ ग्रह ऐसे हैं जिनका प्रभाव हमारे ऊपर सबसे ज्यादा पड़ता है | वो ग्रह हैं -- सूर्य , चन्द्र , शनि , शुक्र , मंगल , गुरु , बुध , राहु , केतु | हमारा जीवन इन्ही नौ ग्रहों से संचालित होता है | हर ग्रह से जीवन के अलग-अलग पहलुओं का विचार किया जाता है | हर ग्रह हमारे जीवन के अलग-अलग कर्मों को संचालित करता है | आईये जाने किस ग्रह से क्या विचार किया जाता है | सूर्य :- सूर्य से पिता सुख विचार किया जाता है | चन्द्र :- चन्द्र से माता सुख विचार किया जाता है | मंगल :- मंगल से भाई का विचार किया जाता है | बुध :- बुध से मामा का विचार किया जाता है | गुरु :- गुरु से पुत्र का विचार किया जाता है | शुक्र :- शुक्र से स्त्री का विचार किया जाता है | शनि :- शनि से मृत्यु का विचार किया जाता है | राहु और केतु :- ये दोनों छाया ग्रह हैं और अ...
फेंगशुई वास्तु

फेंगशुई वास्तु

वास्तु
फेंगशुई क्या है ? चीन में जो वास्तु शास्त्र की पद्धति विकसित हुई उसे फेंगशुई कहा जाता है | फेंगशुई चीनी भाषा के दो शब्द फेंग और शुई से मिलकर बना है | जिसमे फेंग का अर्थ है "जल" और शुई का अर्थ है "वायु"  | फेंगशुई में "ची" की महत्ता है | ची वह अदृश्य शक्ति है जो सभी निर्जीव और सजीव पदार्थों में पाई जाती है | निर्जीव पदार्थों में यह उस पदार्थ विशेष का निर्माण करती है | जबकि सजीव पदार्थों में यह प्राणऊर्जा के रूप में होती है | ची निराकार है अदृश्य है परन्तु अदभुत है | यिन-यांग क्या है ? प्रतिकूल और अनुकूल शक्तियां एकसाथ मिलकर उर्जाओं का निर्माण करती हैं | यिन और यांग ऐसी दो विरोधी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो अपनी निरंतर क्रियाओं से एक-दूसरे पर हावी होने का प्रयास करती हैं , जहाँ एक हावी हो जाती है, वहां असंतुलन हो जाता है | कोई एक ही वस्तु यिन भी हो सक...
भवन के अन्दर वास्तु

भवन के अन्दर वास्तु

वास्तु
भवन के अन्दर की वास्तु इस प्रकार होनी चाहिए रसोई:--  रसोई आग्नेय कोण में होनी चाहिए | यदि ऐसा संभव न हो तो पश्चिम दिशा में भी बनाई जा सकती है | खाना बनाते समय , बनाने वाले का मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए | पूजागृह:- पूजागृह ईशान कोण , उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना चाहिए | कभी भी शयन कक्ष में पूजागृह न बनायें | फर्श पीला या सफ़ेद बनायें | भवन के पूजागृह में किसी प्राचीन मंदिर से लायी मूर्ति कभी न रखें | मूर्तियाँ एक दूसरे की ओर मुख करके बिलकुल भी न रखें | स्वागत कक्ष:-- कक्ष में भारी सामान पश्चिम या दक्षिण दिशा में रखा जाना चाहिए | कक्ष में पशु-पक्षियों के चित्र, स्त्रियों के चित्र, रोते हुए बच्चे का चित्र अथवा युद्ध के चित्र नहीं लगाने चाहिए | शयन कक्ष:-- गृह स्वामी का शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम कोण में अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए | यदि भवन में एक ...
वास्तु के मुख्य सिद्धांत

वास्तु के मुख्य सिद्धांत

वास्तु
वास्तु के मुख्य सिद्धांत १. भवन में जल ईशान , पूर्व या उत्तर दिशा से आना चाहिए | और इन्ही दिशाओं से बाहर जाना चाहिए | २. रसोईघर आग्नेय कोण में होना चाहिए | बिजली का मेन बोर्ड आग्नेय कोण में ही होने चाहिए | ३. भवन में वायु का प्रवाह वायव्य कोण से होना चाहिए | भवन में द्वार और खिड़कियाँ हमेशा सम संख्या में बनाएँ | ४. भवन के दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग , उत्तरी एवं पूर्वी भाग से अधिक भारी होने चाहिए | ५. भवन का दक्षिणी और पश्चिमी भाग उत्तर और पूर्वी भाग से अधिक ऊँचा होना चाहिए | ...
वास्तु अनुसार वेध दोष

वास्तु अनुसार वेध दोष

वास्तु
वास्तु अनुसार वेध दोष १. लोग मंदिर के निकट भवन का होना अच्छा मानते हैं | किन्तु वास्तुशास्त्र के अनुसार मंदिर के भवन की कुछ स्तिथियाँ दोषपूर्ण मानी जाती हैं | अ. भवन की ऊँचाई से दोगुनी दूरी तक भवन के निकट, सामने अथवा पीछे मंदिर नहीं होना चाहिए | ब. यदि भवन के सामने मंदिर है तो उसकी छाया भवन पर नहीं पड़नी चाहिए | स. भवन के मुख्य द्वार के सामने मंदिर नहीं होना चाहिए | २. भवन के निकट या मुख्य द्वार के सामने कीचड़ नहीं होना चाहिए | ३. पूर्व, उत्तर व ईशान कोण में कोई चट्टान या खम्भा नहीं होना चाहिए | ४. भवन के निकट दक्षिण या पश्चिम दिशा में कोई नदी , नाला नहीं होना चाहिए |  ५. भवन के निकट वृक्ष इतनी दूरी पर होने चाहिए, कि उनकी छाया भवन पर न पड़े | ६. भवन के मुख्य द्वार के सामने कोई बाधा नहीं होनी चाहिए | जैसे - दीवार, खम्भा, ...