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वास्तु- भूमि एवं भूखंड चयन

वास्तु- भूमि एवं भूखंड चयन

वास्तु
भवन के लिए भूखण्ड के आकार का चयन  भवन निर्माण के लिए विभिन्न आकार के भूखण्ड मिलते हैं | वास्तुशास्त्र अनुसार विभिन्न आकारों के भूखण्ड के गुण , दोष एवं फल का विचार किया जाना अत्यन्त आवश्यक है | शुभ फलदायक आकार के भूखण्ड १. वर्गाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई बराबर हो और उसके चारों कोण समकोण हों तो उस भूखण्ड को वर्गाकार भूखण्ड कहा जाता है | यह भूखण्ड भवन निर्माण के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है | इस भूखण्ड पर भवन निर्माण कर निवास करने से धनलाभ व आरोग्य वृद्धि होती है | २. आयताकार भूखण्ड :-जिस भूखण्ड की चार भुजाएं हों, आमने-सामने की भुजाएं बराबर हों तथा चारों कोण समकोण हों तो उस भूखण्ड को आयताकार भूखण्ड कहा जाता है | यह ध्यान रखें कि इस प्रकार के भूखण्ड की लम्बाई, चौड़ाई के दुगने से अधिक न हो | यह भूखण्ड भवन निर्माण के लिए श्रेष्ठ भूखण्ड ह...
वास्तु- भूमि परीक्षण

वास्तु- भूमि परीक्षण

वास्तु
भूमि परीक्षण भूमि का परीक्षण करना आवश्यक है | ये दो प्रकार से होता है | १. भूखण्ड के उत्तर दिशा के कोण में लगभग डेढ़ फुट गहरा व चौड़ा गड्ढा खोदें और उसमे से सारी मिट्टी निकालकर उस निकाली गयी मिट्टी से गड्ढे को पुनः भरें | यदि गड्ढा भरने पर मिट्टी शेष बचती है अर्थात अधिक निकलती है तो वो भूमि अच्छी है | ऐसी भूमि पर भवन निर्माण बहुत शुभ फलदायी होगा | यदि मिट्टी शेष नहीं बचती और पूरी पड़ जाती है तो भूमि मध्यम होगी | इस पर भी भवन निर्माण किया जा सकता है | अब यदि मिट्टी न तो शेष बचती है और नाही पूरी पड़ती है बल्कि कम पास जाती है तो वो भूमि भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है | २. जिस भूमि का परीक्षण करना हो, उसमे डेढ़ फुट गड्ढा खोदकर उस गड्ढे में ऊपर तक पानी भर दीजिये | और फिर दो मिनट बाद देखिये यदि पानी जितना भरा था उतना ही हो तो भूमि भवन निर्माण के लिए अत...
भवन वास्तु व्यवस्था से अर्थलाभ

भवन वास्तु व्यवस्था से अर्थलाभ

वास्तु
भवन निर्माण की वास्तु व्यवस्था से जीवन में प्राप्त होने वाली अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण रूप से सम्बन्ध होता है | भूखण्ड पर होने वाले निर्माण में कुछ स्थल ऐसे होते हैं जो धन लाभ या धन हानि के दृष्टिकोण से संवेदनशील माने जाते हैं | उन स्थलों पर निर्माण वास्तुनुसार करवाना हितकर रहता है | इस सन्दर्भ में वास्तु व्यवस्था से सम्बंधित कुछ उपयोगी व्यवस्थाओं का उल्लेख किया जा रहा है – यदि पूर्वी भाग में चबूतरा अथवा बरामदा बनवाना हो तो बरामदे का तल एवं छत नीची होनी चाहिए | यदि उत्तरी भाग में बरामदा बनवाना हो तो बरामदे की छत एवम फर्श नीचा होना चाहिए | यदि उत्तर-पूर्वी भाग के उत्तरी भाग में मार्ग प्रहार हो तो यह शुभ संकेत माना जाता है | वर्षा का जल यदि भूखंड के उत्तरी-पूर्वी भाग से निकलता हो तो यह शुभ लक्षण माना जाता है | उत्तर-पूर्वी भाग में शौचालय का निर्माण कदापि न...